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प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी मोती राम जी महाराज के निर्देशन तथा अनुशासन में श्री संघ मे फिर धर्म की वृद्धि होने लगी।
पूज्य श्री मोती राम जी महाराज सुधर्मा स्वामी से लेकर पंजाब पट्टावली के अनुसार ८८ वीं पीठ पर थे।
१६३८ का चातुर्माम मुनि श्री मोहनलाल जी महाराज पूज्य अमरसिंह जी महाराज के स्वर्गवास के पश्चात अमृतसर से विहार करके नारोवाल, पसरूर, डसका, स्यालकोट, गुजरानवाला तथा कसूर आदि क्षेत्रों मे धर्म प्रचार करके लोगों की श्रद्धा को दृढ़ करते हुए ठाणे दो से फिरोजपुर पधारे । आप वीच मे जनता को विरोधियों तथा पाखंडियों से सावधान करते जाते थे। इस समय फिरोजपुर के श्रावकों ने आपसे विनती की कि वह अपना चातुर्मास वहीं करें । अतएव संवत् १९३८ का चातुमास आपने फिरोजपुर मे ही किया।
फिरोजपुर में एक बार आप एक अजैन के घर गोचरी को गए तो उसने जैन धर्म के द्वष के कारण आपको न केवल गालियां दीं, वरन् मूसल से मार कर पैड़ियों मे धक्का दिया। आप धक्के के वेग को संभालने में असमर्थ होकर गिर पड़े, जिससे आपका पहले का आहार गिर गया और पात्र फूट गए। किन्तु इतना अधिक अत्याचार किये जाने पर भी आपने अपने परिणामों को नहीं बिगाड़ा और आप शान्त बने रहे । आपके शान्त भाव तथा उसके अत्याचार पर लोगों ने उसे अत्यधिक लानतें दी। वह उसे पीटने के लिये फिरते रहे, किन्तु मुनि सोहनलाल जी महाराज ने उनको ऐसा करने से रोका । किन्तु इतने पर भी उस अत्याचारी के मन में पश्चात्ताप नहीं हुआ। बाद में उसके समस्त कुल का नाश हो गया। लोग अर्से तक