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प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी
२३७ उसके सम्बन्ध में यही कहते रहे कि यदि वह इस प्रकार पूज्य सोहनलाल जी महाराज के ऊपर अत्याचार न करता तो उसके कुल का नाश न होता।
गैडेराय जी की दीक्षा अपने फिरोजपुर के चातुर्मास से पूर्व जब आप नारोवाल गए थे तो वहां आपके उपदेश से गैडेराय नामक एक बालक को वैराग्य हो गया था। आपके फिरोजपुर पधारने पर वह बालक भी फिरोजपुर आकर आपकी सेवा करता हुआ विद्याभ्यास करने लगा। गैंडेराय अत्यधिक बुद्धिमान तथा होनहार बालक था । उसमे धर्म की तीव्र भावना के साथ २ मंजीठी रंग का वैराग्य दृढ़ हो चुका था। उसके माता पिता ने उसको गृहस्थ में रोकने का अत्यधिक प्रयत्न किया, किन्तु बालक की ढ़ता के कारण उनको लेशमात्र भी सफलता नही मिली । अंत में उसने पूज्य सोहनलाल जी महाराज से उनके फिरोजपुर के चातुर्मास मे ही दो अन्य बैरागियों सहित दीक्षा ग्रहण की। मुनि गैंडेराय जी पूज्य सोहनलाल जी महाराज के बड़े शिष्य थे। श्राप अत्यधिक विनयी, गुरुभक्त, शास्त्रवेत्ता तथा असाधारण तपस्वी मुनि थे। मुनि सोहनलाल जी को इस प्रकार एक अपूर्व शिष्य रत्न की प्राप्ति हुई। वह उनके सच्चे सहायक तथा क्रियामार्ग के चिन्तामणि रत्न से भी अधिक सहयोगी थे। साथ ही आप अत्यधिक तेजस्वी, प्रतापी तथा धर्म प्रचार के लिये अनुकूल विनीत शिष्य थे।
मुनि गैंडेराय जी तथा पूज्य मुनि सोहनलाल जी दोनों गुरु शिष्यों ने बारह वर्ष तक एक २ चादर, एक २ चोरपटा तथा तीन २ पात्रों से ही काम लिया। आप लोग भोजन मे वहुत ही सादा थे। जो कुछ भी मिल जाता आप एक ही पात्र