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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी का भी अन्यथा अर्थ किया जावे तो आत्मा अनन्त भवों के कर्म बांध लेता है। तू अर्थ का अनर्थ क्यों करता है ? यदि तुझे किसी बात की शंका है तो तू निर्णय करले अथवा शास्त्र को दूसरी बार पढ़ ले।"
पूज्य अमरसिंह जी महाराज के यह शब्द सुनकर आत्माराम तथा विशनचन्द आदि साधुओं ने उनके चरण पकड़ कर तथा हाथ जोड़ कर उनसे निवेदन किया ___ "हे महाराज ! हम तो आपके दास हैं। जो कुछ श्रद्धा
आपकी है वहीं हमारी भी है। हमने जो कुछ सूत्र विरुद्ध भाषण किया है, उसके लिए आप हमको यथान्याय प्रायश्चित्त दे अथवा क्षमा कर दे।"
यह सुनकर श्री महाराज ने उनको यथायोग्य दंड दे दिया। फिर उन्होंने एक पत्र लिखकर भी पूज्य महाराज को दिया । इस पत्र पर आत्माराम जी के गुरु जीवनराम के अतिरिक्त निम्न लिखित अन्य साधुओं के हस्ताक्षर भी थे।
१ बिशनचन्द, २ धर्मचन्द, ३ हुकमचन्द, ४ चम्चामल्ल, ५ हाकमराय तथा ६ सलामत ।
किन्तु आत्माराम का अन्तःकरण मलिन था। अत वह उन शिक्षाओं से कुछ भी लाभ न ले सका और उसने १९२३ के चातुर्मास में ११ प्रश्न लिखकर वूटेराय जी को भेने, क्योंकि उन दिनों श्री बूटेराय जी का चातुर्मास गुजरांवाला में था। श्री बूटेराय जी का जन्म लुधियाना जिले के दूलवां नामक ग्राम के टेकचन्द जाट की कर्मो नामक स्त्री से विक्रम सवत् १८६३ को हुआ था। उन्होंने संवत् १८८८ मे श्री १००८ पूज्य मलूकचन्द जी महाराज के तपा गच्छ के श्री मुनि नागरमल जी महाराज