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प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी __इस निवेदन पत्र को पाकर पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज अपने मन में विचार करने लगे कि “साधुओं का गुजरानवाला पहुँचना तो आवश्यक है। किन्तु गुजरानवाला भेजने के लिये मुनि सोहनलाल जी से अधिक उपयुक्त व्यक्ति दूसरा है नहीं। किन्तु इस समय मुनि सोहनलाल जी तेला किये हुए हैं, जिसे उन्होंने आज ही आरम्भ किया है। चातुर्मास प्रारम्भ होने में समय कम है । वषो के बादल उमड़ रहे हैं। यदि सोहनलाल जी को पारणा करने के उपरांत भेजा जावेगा तो पांच छै दिन की देरी और भी हो जावेगी। इस समय धर्म संकट का अवसर उपस्थित है। अतएव समाज सेवा के लिये महतरा-आगोरए इत्यादि आगारों से यही उचित जान पड़ता है कि सोहनलाल जी को उनके व्रत का पारणा कल ही करवा कर उनको गुजरानवाले की ओर विहार करा दिया जावे।"
इस प्रकार मन ही मन विचार करके पूज्य महाराज श्री ने श्री सोहनलाल जी को अपने पास बुला कर उनसे कहा ___"सोहनलाल ! तुम सवेरे ही अपने व्रत का पारणा करके जितनी जल्दी हो सके गुजरानवाला पहुंच जाओ। समय कम है। सफ़र लम्बा है।"
पूज्य महाराज के यह वचन सुन कर मुनि सोहनलाल ने उनको वन्दना नमस्कार करते हुए उनसे नम्रतापूर्वक निवेदन
किया
"गुरुदेव ! मुझे कल के स्थान पर आज ही विहार करने की आज्ञा दी जावे तो आपकी बड़ी कृपा होगी। तेले का पारणा तो मैं नारावाल अथवा पसरूर जाकर कर लूगा । आपकी कृपा से इस में मुझे कोई कष्ट नहीं होगा। आपने जो मुझे पारणा करने को कहा सो भी ठीक है, किन्तु यह आगार तो भगवान्