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प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी ।
२२६ इसके पश्चात् आत्मा राम के गुरु जीवन राम जी महाराज ने भी फिरोजपुर जिले के चूडचक्क नामक ग्राम में आत्मा राम को अपने गच्छ से बाहिर कर दिया। इस पर आत्मा राम रोने लगा। तब जीवन राम जी महाराज ने उससे कहा ___अब इतना क्यों रोता है ? तुझको तो भव भव में रोना पड़ेगा। अब मैं तुझको अपने गच्छ में कभी भी न रकगा ।" यह कह कर उन्होंने आत्माराम को अपने गच्छ से निकाल दिया।
इसके पश्चात आत्माराम तथा विशनचन्द आदि ने १९३२ में अहमदाबाद पहुंच कर वहां बुद्धि विजय को गुरु धारण किया। यह बुद्धि विजय पहले सुधर्म गच्छ से निकल कर तपा गच्छ में आ गए थे। पहिले इनका नाम बूटे राय जी था। अतएव अहमदाबाद में आत्माराम आदि ने तपा गच्छ का वेष धारण किया।
बाद मे आत्माराम को उस पंथ वाल गृहस्थों ने 'सूरीश्वर' पद देकर संवत् १९४३ में उसे 'आचार्य' पद देकर उसका नाम विजयानन्द सूरीश्वर अपर नाम आत्मा राम रख दिया।
इस प्रकार संवत् १९३३ में श्री सोहनलाल जी महाराज के दीक्षा लेने के समय तक आत्मा राम जी साधु मार्गी सम्प्रदाय से पृथक होकर मन्दिरमार्गी पीताम्बर सम्प्रदाय में सम्मिलित हो चुके थे।
पूज्य श्री अमर चंद जी महाराज १६३६ का चातुमास लुधियाने में करके वहां से विहार करते हुए अमृतसर आए तो
आत्मा राम तथा विशन चंद आदि साधु भी अमृतसर आ गए। विशन चंद आदि साधुओं ने पूज्य महाराज के पास