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दीनों का कष्ट निवारण
२०७ प्रेम भरे व्यवहार को देख कर अंधा उनको साक्षात् दीनबंधु समझता था। वह अपनी रोगशय्या पर पड़े पड़े सोचा करता था कि "इस व्यक्ति का प्रेम तो राम द्वारा शबरी से किये हुए प्रेम अथवा कृष्ण द्वारा सुदामा से किये हुए प्रेम से बढ़ कर है, क्योंकि शवरी राम की भक्त थी और सुदामा कृष्ण का मित्र था। मैं तो इसका न भक्त हूं और न मित्र ही हूं। फिर भी यह मेरी नि.स्वार्थ सेवा कर रहा है। भगवान् वही है जो भक्त का दु.ख दूर करे। किन्तु जो अभक्तों का दुःख दूर करे वह तो भगवान् से भी बढ़ कर है।"