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दीनों का कष्ट निवारण
२०५ उनमे से रक्त निकलकर उसके वस्त्रों को अपना रंग देता हुआ सड़क की धूल को भी अपने रंग में मिलाने लगा। जनता ने इस दृश्य को देखा । वह उसके चारों ओर एकत्रित होवर कोचवान को कोस कर उसके साथ सहानुभूति प्रकट करने लगी। किन्तु उसके घृणोत्पादक शरीर को देख कर किसी को भी उसकी सेवा सुश्रूषा तथा मरहम पट्टी करने का साहस न हुआ। उधर वह अंधा चोट लगने के कारण महान् करुणोत्पादक शब्दों में रो रो कर अपने भाग्य को दोष देता हुआ कष्ट के कारण बेहोश हो गया । उस समय हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी पास ही एक सर्राफ की दूकान पर बैठे हुए अपने मित्रों से वार्तालाप कर रहे थे। अचानक उनकी दृष्टि उस बेहोश अंधे भिक्षुक पर पड़ी। देखते ही उनका कोमल हृदय करुणा से भर गया। वह उठ कर उस भिक्षुक के पास गए। वहां जाकर उन्होंने उसके घृणोत्पादक शरीर को अपनी गोद में ले लिया। प्रथम उन्होंने उसके घावों को साफ किया। फिर उन्होंने अपने उत्तरीय वस्त्र को फाड़ कर उसके सिर में पट्टी बांधी। इसके पश्चात् वह उसे होश में लाने का प्रयत्न करने लगे। ____ अंधा जब होश में आया तो उसने अपने को किसी की गोद में पा कर उससे प्रश्न किया
"भाई ! मैं कहां हूं?" तब सोहनलाल जी ने उसे उत्तर दिया
"भाई ! तुम यहीं सड़क पर हो। बतलाओ तुम्हारी तबियत कैसी है ?"
उस भिक्षुक के जीवन में आज यह बिल्कुल नई बात थी। आज तक सहानुभूति अथवा प्रेम के शब्द का उमको लेशमात्र भी अनुभव नहीं था। अतएव इस समय वह प्रेमपूर्ण