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तप तथा अध्ययन
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- आपकी बुद्धि अत्यन्त तीक्ष्ण थी। आपको जो कुछ भी पढ़ाया जाता वह श्राप को तुरन्त याद हो जाता था। आपकी तीक्ष्ण बुद्धि के कारण पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज भी
आप पर विशेष कृपा किया करते थे। आपको संवत् १९३६ तथा १६३७ मे तब तक पूज्य अमरसिंह जी महाराज की सेवा मे अमृतसर में चातुर्मास करने का अवसर मिला, जब तक उनका
आषाढ़ शुक्ला द्वितीया को संवत् १९३८ मे अमृतसर मे स्वर्गवास न हो गया।
'वास्तव मे पूज्य अमरसिंह जी महाराज को इससे दो दिन पूर्व ही यह भास गया था कि आपका आयुकर्म शेष होकर अब शरीर पूरा होने वाला है। आपने आषाढ़ कृष्ण अमावस संवत् १६३८ को पक्षी उपवास किया। इसके पश्चात् जब आपने
आषाढ़ शुक्ला प्रतिपदा को पारणा किया तो वह सम्यक प्रकार से प्रणमत न हुआ। तब श्री पूज्य महाराज ने अपने जान बल से अपने अन्त समय को जान कर आलोचना आदि सर्व विधान करके तथा सब जीवों से क्षमापन करवा के शान्त भाव से श्री संघ के सन्मुख दिन के तीन बजे से अनशन प्रारंभ कर दिया। फिर अत्यन्त उत्तम भावों के साथ मुख से अहन, शब्द का जाप करते हुए दिन के एक बजे के लगभग आपने इस अनित्य संसार का त्याग किया। पूज्य अमरसिंह जी महाराज ने अपने चालीस चातुर्मासों में से प्रत्येक मे आठ २. दिन के अनशन कर कुल ४० अठाई व्रत किये।
पूज्य अमरसिंह जी महाराज के स्वर्गवास के समाचार से भारत भर में शोक की घटाएं छा गई। अमृतसर के श्रावकवर्ग ने इस घटना का संवाद तार द्वारा सर्वत्र भेज दिया, जिससे प्रत्येक स्थान के प्रावक अमृतसर में एकत्रित हो गए। श्रावक