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प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी
जइवियणि गणेकिसे चरे जइवियभुनइमासमंतसो जेइह
____ मायाईमिज्जई आगंतागम्भाय अणं तसो । मूत्रकृतांग, प्रथम श्रुत स्कन्ध, अध्याय २, उद्देशक १, गाथा ६
यदि कोई नग्न भी हो जावे, सरीर की कृश भी क्रे, देश में भी विचरे, मास मास के अन्तर से भी प्राहार करे, ऐसी वृत्ति करते हुए भी यदि वह छल करे तो अनंत काल पर्यंत गर्भादि में प्रवेश करता है।
पूज्य सोहनलाल जी महाराज ने जिस समय मुनि दीक्षा लेकर सूत्र ग्रन्थों का अध्ययन करना आरम्भ किया तो आत्मा राम संवेगी श्वेताम्बर स्थानकवासी सम्प्रदाय के विरुद्ध बहुत अनर्गल भाषण दे रहे थे। पूज्य सोहनलाल जी ने उसका कई बार मुकाबला किया और अन्त में वह पूज्य सोहनलाल जी के पीछा करने से ऐसा घबराया कि उसको उनके सामने से भागते ही बना।'
नीचे की पंक्तियों में आत्मा राम संबेगी के चरित्र को विस्तारपूर्वक दिया जाता है
श्री आचार्य अमरसिंह जी महाराज ने श्री जीवनराम जी महाराज को विक्रम संवत् १६०६ में दीक्षा दी थी। उन्होंने