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दीक्षा ग्रहण
अपने अभिभावकों की इस इच्छा का पता इन पांचों को लग गया । इस पर इन लोगों ने आपस में परामर्श किया कि अपनी प्रतिज्ञा को किस प्रकार पूर्ण किया जावे। श्री सोहनलाल जी ने गोविन्द राय से कहा ___"प्रतिज्ञा को सफल बनाने का समय आ गया है। बोलो, आपका क्या विचार है ?" इस पर गोविन्द राय ने उत्तर दिया
"आपका तो विवाह होने वाला है। आभूषण तय्यार हो गए हैं।"
तब सोहनलाल जी बोले "तुम्हारे विवाह की तय्यारियां भी तो पूरी हो चुकी हैं और गहना भी बन चुका है।" तब गोबिन्द राय ने उत्तर दिया "मैं तो अपने विवाह के आभूषण घर से निकाल लाया।"
यह कह कर उसने आभूषणों की पोटली खोल कर आभूषण अपने मित्रों को दिखलाए और फिर उनको हथौड़े से कुचल कुचल कर तोड़ डाला। इस पर उसके चारों मित्रों को उसका विश्वास हो गया। अब उन्होंने यह पूर्ण निश्चय कर लिया कि वह विवाह के चक्कर में किसी प्रकार न पड़ कर दीक्षा अवश्य
लेंगे।
___अब तो इन लोगों के दीक्षा लेने के विचार का समाचार सारे नगर में फैल गया और उनके परिवार वाले उनको सब प्रकार से समझाने लगे। __इन पांचों का अपने घर वालों के साथ यह झगड़ा संवत् १६२६ से ले कर १६३१ तक लगभग पांच वर्ष तक चला। किन्तु