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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी - सोहनलाल-बहिन ! मैं ने तो कोई खास कार्य नहीं किया। यह तो मेरा साधारण धर्म था । वास्तव मे तुम्हारी रक्षा तुम्हारी धर्मढ़ता ने की है। धन्य है तुमको जो तुमने ऐसे संकट के समय भी धर्म को न त्यागा।
इस प्रकार वार्तालाप करते हुए उस लड़की का घर आ गया। घर पहुंच कर लड़की ने अपने पिता आदि को सब घटना सुनाई। उसे सुन कर सभी ने सोहनलाल जी की बहुत प्रशंसा की । वह कहने लगे।
"आपने आज हमारे कुल की लाज रखली । हम आपके इस ऋण से कभी भी उऋण नहीं हो सकते।"
इसके बाद उस लड़की ने सोहनलाल जी से कहा
"भाई ! आज तुमने मेरा अनंत उपकार किया है। आपने मेरे प्राण की तथा प्राण से भी अधिक सतीत्व धर्म की रक्षा की है। इसके लिये मैं तुम्हारी किन शब्दों मे प्रशंसा करू। परमात्मा तुम्हारा मंगल करे।
इस पर सोहनलाल जी बोले
"भाई का कर्तव्य था कि वह बहिन के संकट के समय उसकी सहायता करता। मैंने इससे अधिक कुछ भी नहीं किया। यह तो केवल धर्म का ही प्रभाव था, अन्यथा कहां वह चार चार शस्त्रधारी और कहां मैं निहत्था और अकेला ।"
उस युवती को उसके घर छोड़ कर सोहनलाल जी पर्याप्त रात गए अपने घर पहुंचे। किन्तु उनके द्वारा किया हुआ यह वीर कार्य वात की बात से सारे नगर की चर्चा का विषय बन गया । लाला गंडा मल और उनकी पत्नी ने जब इस समाचार को सुना तो उन्होंने सोहनलाल जी को बहुत शावाशी दी।