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दीनों का कष्ट निवारण
१६६ गति से चलती हुई सर्राफा बाजार में पहुंची। वहां वह दूकानों की अद्भ त सजावट को देखने लगी तो उसका ध्यान दीपकों के थाल पर से हट गया, जिस से उसकी साड़ी का पल्ला ढीला होकर दीपक से छू गया। अब तो उसकी साड़ी एक दम धू धू करके जलने लगी।
बालिका अपने को मृत्यु मुख में देख कर एक दम घबरा उठी। थाल उसके हाथ से छूट कर पृथ्वी पर गिर पड़ा। उससे उसकी साड़ी नीचे से भी जलने लगी। इससे घबरा कर बालिका के मुख से एक जोर की चीख निकल गई। उसकी करणोत्पादक दर्दभरी चीख को आसपास के सभी दूकानदारों तथा मार्ग चलने वालों ने सुना और वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर उस बालिका की ओर देखने लगे। किन्तु सोहनलाल जी इस दृश्य को देख कर अपनी खुली हुई दूकान तथा ग्राहकों के सामने फैले हुए आभूषणों सभी को भूल कर अपनी दूकान से तुरंत कूद पड़े। उस बालिका के पास पहुंच कर उन्होंने उसकी साड़ी के जलते हुए भाग को अपने पैरों के नीचे दबा कर उसको हाथ से भी मलना प्रारम्भ किया। साड़ी की आग बुझाने में उनके दोनों हाथ तथा पैर झुलस गए, किन्तु उन्होंने अपना प्रयत्न न छोड़ा। अंत में उन्होंने साड़ी की आग को पूर्णतया बुझा दिया, जिससे बालिका के प्राण भी बच गए। वह बालिका अपने प्राणों को संकट में डाल कर एक अपरिचित बहिन की प्राण रक्षा करने वाले महान् वीर भाई की प्रशंसा करती हुई अपने घर चली गई। सोहनलाल जी इसके पश्चात् अपनी दूकान पर इस प्रकार जाकर बैठ गए, जैसे कुछ भी न हुआ हो ।
जब आपने घर जाकर अपने हाथ पैर में मरहम लगाया तो आपकी मामी जी ने आप से कहा