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मित्रों का सुधार
१२१ सोहनलाल-मित्र! यह भी तुम्हारी भ्रांत धारणा है। जैनी लोग वौद्धों में कभी भी सम्मिलित नहीं थे, जो वह उन से अलग होते । उनका वौद्धों से कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। बौद्धमत को गौतम बुद्ध ने चलाया है, किन्तु जैन धर्म बौद्ध धर्म से भी बहुत पुराना है।
मित्र-मैं ने स्कूल की किताबों में पढ़ा है कि जैन धर्म को महावीर स्वामी ने चलाया था।
सोहनलाल-मित्र ! भगवान महावीर स्वामी से पहिले भी जैन धर्म का प्रचार करने वाले ऋषभदेव आदि तेईस अवतार हो चुके हैं। उन सभी ने जैन धर्म का महावीर स्वामी के समान उपदेश दिया था। वैसे संसार में जैन, धर्म सृष्टि के प्रारम्भ से है।
एक अन्य मित्र--सोहनलाल ! तुम्हारे साधुओं के क्या आचार विचार हैं ?
सोहनलाल-मित्र ! जैन साधु किसी भी जीव की हिंसा नहीं करते। वह कभी असत्य भाषण नहीं करते और न चोरी करते है। यहां तक कि यदि दांत कुरेदने के लिये एक तिनके की
आवश्यकता भी पड़े तो वह उसे भी बिना पूछे नहीं लेते। वह किसी स्त्री को चाहे वह उनसे बड़ी हो अथवा छोटी अपने को स्पर्श नहीं करने देते और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते है। वह अपने पास कौड़ी पैसा कुछ भी नहीं रखते। गर्मी का मौसिम आने पर वह न तो कभी पंखा करते है, न खुले मैदान में ही सोते हैं और न स्नान ही करते हैं। सदी आने पर वह न तो कभी आग जलाते हैं और न रुईदार वस्त्र रजाई आदि ओढ़ते हैं। वह सदा नंगे पैर तथा नंगे सिर रहते हैं। गृहस्थियों के यहां वह पलंग खाट आदि पर नहीं बैठते। वह किसी धातु के