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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी मन को इधर उधर न भटकने दूगी और मैं अपने मन, वचन तथा काय से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करूगी।
इस पर सोहनलाल जी बोले
सोहनलाल-माता ! मैं आज के दिन को धन्य समझता हूं कि मुझे तुम जैसी माता की प्राप्ति हुई।
युवती की सखी किवाड़ के छेद मे से इस सारे दृश्य को देख रही थी। इस दृश्य को देखकर उसके मन में बड़ा भारी आनन्द हुआ। वह किवाई खोल कर अन्दर आ गई और उस ब्रह्मचारी के चरणों मे अपना मस्तक रख कर कहने लगी ___ "भाई ! मैं तुमको किन शब्दों में धन्यवाद दू। आज तुमने मेरी सखी का उद्धार किया है। आपने उसे पापपंक से निकाल कर धर्म रूपी राजमार्ग पर आगे बढ़ाया है।"
इसके पश्चात् सोहनलाल जी अपनी नवीन माता को नमस्कार करके अपनी दूकान पर चले आए।