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२५ दीक्षा का निश्चय
समेमाणा पलेमाणा,
पुणो पुणो जाई पक्रपंति । आचारांग सूत्र, प्रथम श्रुत स्कंध, अध्ययन ४, उद्देशक १ संसार में फंसे रहने वाले लोग घराबर जन्म मरण प्राप्त करते
सत्संग सभी सुखों का कारण है। सत्संग प्राप्त होने पर उसके प्रभाव से सभी मनवांछित सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। सत्सग ही इस जीव को आत्मा से परमात्मा बना देता है। सत्संग की एक घड़ी में जीवात्मा को इतना अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है कि कुसंगति में लाखों वर्षों में भी उतना लाभ नहीं हो सकता। इसके विरुद्ध कुसंगति से तो अधोगति दायक महा पाप का बंध हो कर आत्मा की मलिनता बढ़ती है। सत्संग का सामान्य अर्थ है उत्तम सहवास । जहां निर्मल तथा शुद्ध वायु नहीं आती, वहां रोगों की वृद्धि होना आवश्यम्भावी है। इसी प्रकार जहां जीव को निर्मल आत्माओं का संग नहीं मिलता वहां आत्मरोगों (दुर्गुणों) का उत्पन्न होना अनिवार्य है। जिस प्रकार दुर्गधि से बचने के लिए नाक पर वस्त्र रख लिया जाता हैं उसी प्रकार दुर्गुणों से बचने के लिये कुसंगति