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सतीत्व रक्षा
१८७ के कारण उसके मुख तथा नाक में से रक्त निकल रहा था। वह युवती उनसे कह रही थी। ___"भले ही तुम मुझे जान से मार डालो, किन्तु मेरा धर्स मत विगाड़ो।" .
किन्तु उन नरपिशाचों के नेत्रों में उस अबला के लिये लेशमात्र भी दया नहीं थी। वह उसे मारते हुए कह रहे थे ___"यदि तू राजी खुशी हमारी इच्छा पूरी कर देगी तो हम तुझको छोड़ देगे, अन्यथा पहिले तेरी दुर्गति करके फिर तुझे बोटी बोटी करके काट डालेंगे और तेरे शरीर के टुकड़ों को इन झाड़ियों में फेंक देगे।" __इस दृश्य को देख कर सोहनलाल जी के वीरहृदय मे उसी समय कर्तव्य भावना का उदय हुआ। उनका रक्त वीरभाव से खौलने लगा। उन्होंने मन में विचार किया ___ "यद्यपि इन चारों के मुकाबले में मैं एकाकी हूँ, किन्तु मेरे साथ सत्य का अजेय बल है। यदि एक अबला की सतीत्व रक्षा करते समय मेरे प्राण भी चले गए तो कोई चिन्ता नहीं ।”
इस प्रकार मन में विचार कर उन्होंने उन दुराचारियों को निम्नलिखित शब्दों में ललकारा
“खबरदार ! जो बहिन के शरीर को हाथ लगाया ।" __ सोहनलाल जी के यह शब्द सुन कर वह चारों सकपका कर एक दूसरे की ओर देखने लगे। तब उन में से एक ने सोहनलाल जी से कहा ___ "अरे नादान ! तुझे क्यों अपने प्राण भारी हो रहे हैं ? अपनी जान बचा कर ले जा। तुझे दूसरों से क्या मतलब ! इससे तेरा क्या नाता है ?"
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