________________
१७८
प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी
वैराग्योत्पादक महापुरुषों की जीवन गाथाओं को गाना प्रारम्भ किया। उनके पास चार अन्य युवक बैठे हुए थे, जिनके नामशिव दयाल, दूलो राय, गणपत राय तथा गोविंद राय थे। यह पांचों एक दूसरे के घनिष्ट मित्र होते हुए भी कभी किसी की
आलोचना, अथवा स्त्रियों के शृङ्गार का वर्णन अथवा व्यर्थ का उपहास न करते हुए समय मिलने पर प्रायः ज्ञानचर्चा करते हुए एक दूसरे को आत्मोत्थान में सहायता दिया करते थे। इस अर्थ में वह एक दूसरे के सच्चे मित्र थे। सोहनलाल जी सनत्कुमार चक्रवर्ती का चरित्र वांच कर उसकी विवेचना निम्न प्रकार से कर रहे थे
सनत्कुमार नामक एक चक्रवर्ती राजा हस्तिनापुर मे राज्य करते थे। उनके आधीन बत्तीस हजार मुकुटवंद राजा थे। सोलह सहस्र देवता उनकी सेवा में अपना सौभाग्य मानते थे। उनको सभी प्रकार के भोगोपभोग की उत्कृष्ट सामग्री सुलभ थी। उनका शरीर इतना अधिक सुन्दर था कि एक दिन राजा इन्द्र ने अपनी सुधर्मा सभा मे उनके रूप की अत्यधिक प्रशंसा, की। इन्द्र द्वारा चक्रवर्ती के रूप की प्रशंसा सुन कर दो देव उनका रूप स्वयं अपने नेत्रों से देखने के लिये विप्र का रूप धारण कर हस्तिनापुर आए । उन्होंने हस्तिनापुर आकर चक्रवर्ती के सेनापति से उनके दर्शन कराने की प्रार्थना की। इस पर चक्रवर्ती के सेनापति ने उनको उत्तर दिया_ "भाई ! इस समय महाराज स्नान करने के लिये स्नान घर में गए हुए हैं । अतएव आप दो घड़ी ठहर जावें। जब चक्रवर्ती स्नान के पश्चात् राजभवन मे आवेगे उस समय दर्शन कर लेना।"
इस पर ब्राह्मण वोलें