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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी हो गया। उन्होंने पुत्र का आलिंगन करके भावावेश में उनका मस्तक चूम कर कहा___मथुरादास जी-बेटा! तुमको शावाश है। मुझे तुमसे ऐसी ही आशा थी। ___ इसके पश्चात् उन्होंने साता लक्ष्मीदेवी से परामर्श करके पट्टी के शाह को बुलवा कर उनसे कहा
मथुरादास जी-शाह जी! हम आपकी लड़की की सगाई तो अभी ले लेगे, किन्तु विवाह अभी नहीं करेगे। क्योंकि सोहनलाल की इच्छा अभी ब्रह्मचर्य का पालन करने की है। जव तक उसकी विवाह की इच्छा न होगी, हम विवाह न करेगे और न हम उसको विवाह के लिए विवश करेंगे।
पट्टी के शाह ने मथुरादास जी की यह बात स्वीकार करली। क्योंकि वह यह वात जानते थे कि मथुरादास जी अपने प्रण को प्राण से भी बढ़ कर मानते हैं। एक बार सगाई स्वीकार कर लेने पर वह विवाह के लिये इंकार न करेंगे। उनको क्या पता था कि सोहनलाल जी आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए संसार में एक अवतारी पुरुष कहलावेगे। अन्त मे सम्बन्ध का निश्चय करके एक शुभ मुहूर्त में सोहनलाल जी की सगाई कर ही दी गई। इस घटना से सारे परिवार मे आनन्द ही आनन्द छा गया।