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सगाई
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समाज सेवा तथा धार्मिक क्रियाओं का साधन करने का अवसर दें।
मोहनलाल जी के मुख से यह उत्तर सुन कर उनके पिता मथुरादास जी बोले- मथुरादास जी-पुत्र ! तुम्हारे विचार अत्यन्त प्रशंसनीय हैं। किन्तु मैं ने पट्टी नगर के शाह को यह वचन दे दिया है कि मैं सभी से सम्मति करके तुम्हारी कन्या के सम्बन्ध को स्वीकार कर लूगा । क्योंकि वह कन्या रूपवती, गुणवती तथा विदुषी है। धर्म का प्रेम भी उसको कम नहीं है। तुम्हारी उसकी जोड़ी ठीक रहेगी। अतएव बेटा ! मै चाहता हूं कि तुम्हारे धार्मिक कार्यों में त्रुटि भी न हो, तुम्हारे ब्रह्मचर्य के शुद्ध विचारों को ठेस भी न पहुंचे और साथ ही मेरे वचन की रक्षा भी हो जावे। अतएव अव तुम्ही बतलाओ कि इसको किस प्रकार किया जावे ?
सोहनलाल जी को अपने माता पिता में अटल श्रद्धा थी। वह उनके धार्मिक विचारों से पूर्णतया परिचित थे। सोहनलाल जी कैसी ही आपत्ति आने पर भी माता पिता की आज्ञा से मुख नहीं मोड़ते थे। अतएव उन्होंने पिता जी को उत्तर दिया
सोहनलाल जी-पिता जी! आप मेरे पूज्य हैं। आपकी श्राज्ञा मुझे भगवद् आज्ञा के समान मान्य है। यदि कोई ऐसा तरीका हो सके कि आपकी बात भी रह जावे और मेरे पूर्ण ब्रह्मचर्य तथा धार्मिक क्रियाओं में बाधा भी न आवे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। आप जो कुछ भी कहेंगे मेरे आत्म कल्याण के लिए ही कहेगे।
सोहनलाल जी का यह उत्तर सुन कर लाला मथुरादास जी का हृदय पुत्र की आज्ञाकारिता के कारण आनन्द से प्रफुल्लित