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सती पार्वती से वार्तालाप
इस पर सोहनलाल जी ने उत्तर दिया
"महाराज साहिब ! जिस समय आत्मा में तीव्र वैराग्य की भावना का उदय होता है उस समय एक तो क्या सहस्रों के साथ के सम्बन्ध को भी त्यागने में समय नहीं लगता। आवश्यकता केवल तीव्र वैराग्य उत्पन्न होने की है।"
इसके पश्चात् सोहनलाल जी ने अन्य भी अनेक प्रश्न महासती से किये । महासती जी.ने उनके प्रश्नों से उनके ज्ञान बल से अत्यधिक प्रभावित हो कर उनके प्रश्नों का उत्तर समुचित रूप से दिया।
इस प्रकार जब तक महासती पार्वती जी पसरूर में विराजी, तब तक श्री सोहनलाल जी उनसे ज्ञान का लाभ उठाते रहे। सोहनलाल जी की दिनचर्या में सामायिक प्रतिक्रमण आदि सभी धार्मिक क्रियाओं का दैनिक प्रवेश था। उनकी धार्मिक भावना इतनी उत्कट थी कि साधु संगति से उसमें विशेष अंतर नहीं पड़ता था। महासती पार्वती जी ने श्री सोहनलाल जी के इन गुणों का प्रत्यक्ष परिचय पाकर पसरूर से प्रसन्नतापूर्वक विहार किया।