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द्वादश व्रत ग्रहण करना
से बेमि से जहा वि, कुम्मे हरए विनिविट्ठचित्ते । पच्छन्न-पलासे उम्मग्गं, से नो लभइ ॥
श्राचारांग सूत्र प्रथम श्रुत स्कन्ध, अध्ययन ६, उद्देशक १ जिस प्रकार शैवाल तथा पत्तों से ढके हुए सरोवर में श्रासक्त कछुवा कभी ऊपर नहीं पा सकता, उसी प्रकार संसार में फंसे हुए अज्ञानी जीव भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते । • संवत् १६२५ विक्रमी का चातुर्मास्य समाप्त करके श्री पूज्य श्राचार्य अमरसिंह जी महाराज स्यालकोट निवासी रलाराम श्रोसवाल को दीक्षित करके पसरूर पधारे। ऐसे महान् पुरुषों के दर्शन करने तथा उनकी अमृतमयी वाणी को सुनने का अवसर किसी किसी नगर के निवासियों को ही प्राप्त होता है। फिर उस नगर के सौभाग्य का वर्णन तो किस प्रकार किया जा सकता है, जहां प्राचार्य सम्राट श्री सोहनलाल जी महाराज का लालन पालन हुआ हो तथा जो पंजाब केसरी पूज्य श्री काशी राम जी महाराज की पवित्र जन्म भूमि हो। पूज्य अमरसिंह जी महाराज के पधारने से पसरूर के श्रावकवर्ग में एक अपूर्व उत्साह की लहर फैल गई। उन्होंने इस अमूल्य अवसर से