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जितेन्द्रियता
व्याकीर्णकेशरकरालमुखमृगेन्द्राः,
नागाश्च भूरिमदराजिविराजमानाः । मेधाविनश्च पुरुषाः समरेषु शूराः,
स्त्रीसन्निधौ परमकापुरुषाः भवन्ति ।। फैली हुई केशर तथा भयंकर मुख वाले सिंह, अत्यधिक मद झरने वाले हाथी, बड़े बडे भारी पंडित विद्वान तथा समरवीर भी स्त्री के सामने जाकर अत्यन्त कायर बन जाते हैं।
- अनादि काल से इस संसार में कामदेव का अटल साम्राज्य नहा है। इसने बड़े बड़े वीरों तथा अवतारी पुरुषों को अनेक प्रकार से नाच नचाए हैं। इसी कामदेव के वशीभूत हो कर ब्रह्मा जी ने स्वयं अपने द्वारा निर्मित सावित्री को ही श्रद्धांगिनी का पद दे दिया तथा शिव जी मोहनी के पीछे पीछे पर्वतों आदि मे दौड़ते फिरे। इसी के प्रभाव से इन्द्र को गौतमशापवश अपमानित जीवन व्यतीत करना पड़ा और चन्द्रमा को स्थायी रूप से कलंक लगा। इसी के कारण विश्वामित्र जैसे जगत् प्रसिद्ध ऋषि की तपस्या भंग हई तथा व्यास एवं पाराशर जैसे अद्वितीय विद्वानों को नीच कुलोत्पन्न कन्याओं की अनुनय