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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अानन्द हुआ। बहिन को सर्वगुणसम्पन्न भाई मिलने की प्रसन्नता थी और सोहनलाल जी इस बात पर प्रसन्न थे कि वह अब उस परिवार की नि संकोच हो कर सहायता कर सकेंगे। राखी बंधवा कर सोहनलाल ने बहिन को अनेक वस्त्राभूपण दिये । इस पर वहिन बोली
बहिन-भाई यह क्या । ऐसे समय तो दस वीस रुपये से अधिक नहीं दिए जाते। अधिक से अधिक एक साड़ी भी दे दी जाती है। फिर आप इतना अधिक सामान क्यों दे रहे हैं।
सोहनलाल-इसी बात को ध्यान में रख कर तो मैंने तुमसे प्रतिज्ञा कराई थी। मै तो यह समझता हूँ कि मैंने तुम्हारा आज ही विवाह किया है और इसी लिए मैं आज तुमको विवाह के वाद की जाने वाली विदाई का सामान दे रहा हूं। __सोहनलाल जी के अत्यधिक प्राग्रह को देख कर उसे वह सब वस्तुएं उनसे लेनी पड़ीं। सोहनलाल जी इसके बाद जब तक गृहस्थ से रहे उन्होंने इस सम्बन्ध का तब तक पालन किया।