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द्वादश व्रत ग्रहण करना
१४३ चारित्र को धारण करो तथा सच्चे धर्मवीर बन कर मोक्षमार्ग के पथ पर आगे बढ़ो । भगवान् ने कहा है ___ दुरणुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणां ।
मोक्ष मार्ग के पथिकों ! वीरों का मार्ग अत्यन्त कठिन है । उस पर कायर नहीं चल सकता। ___'कर्मफल अवश्य प्रात्त होता है। ऐसा जान कर तत्वज्ञ पुरुषों को चाहिये कि वह कर्म बंधन के कारणों से दूर रहें। यदि कर्स बंधन के कारणों को सर्वथा दूर न कर सको तो कम से कम अमर्यादित जीवन तो व्यतीत न करो, क्यों कि अव्रती का द्रव्य भी अनन्ता है। जो व्रतों को अंगीकार करता है वह अपने आत्मा मे अनंतकाल से अविरल गति से आती हुई कर्मवर्गणाओं को रोक देता है । इसलिए अपने जीवन में कुछ न कुछ व्रत 'अवश्य लेने चाहियें।"
पूज्य अमरसिंह जी महाराज इस प्रकार का चमत्कारपूर्ण व्याख्यान दे कर चुप हो गए । उसको सुन कर जनता आनन्द से पुलकित हो उठी। उसमें से अनेक ने यथाशक्ति अनेक प्रकार के नियम लिए। लोग इस प्रकार नियम ले ही रहे थे कि उनके बीच में से सोहनलाल जी उठ कर खड़े हो गए।
और उन्होंने गुरु महाराज से कहा-- ___ सोहनलाल-गुरुदेव ! धन्य है आपको, जो आप हम जैसे पतितों का भी उद्धार करने के लिए प्रसन्नतापूर्वक अनेक प्रकार की परीषहों को सहते हुए ग्रामानुग्राम विहार कर रहे हैं। गुरुदेव ! आपने जो भगवान् महावीर स्वामी की वाणी सुनाई वह सत्य है। किन्तु गुरुदेव ! मेरी इतनी शक्ति नहीं है । यद्यपि मेरे मन में बार बार यह विचार आते हैं कि जिस प्रकार अनेक महान् वीर पुनीत आत्माओं ने अन्तरंग तथा बाह्य परिग्रह का