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द्वादश व्रत प्रहण करना
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आज से तुम अहिंसाणुव्रत का पालन करते हुए स्थावर जीवों की हिंसा कम से कम करते हुए त्रस जीवों की हिंसा तथा सब प्रकार की संकल्पी हिंसा का परित्याग करो। यह पहला स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत है। सत्याणुव्रत का पालन करते हुए तुम व्यापार आदि में कम से कम असत्य का प्रयोग करना। यह स्थूल मृषावाद विरमण व्रत है। अचौर्याणुव्रत का पालन करने के लिए तुम जल तथा मिट्टी के अतिरिक्त किसी के द्वारा बिना दी हुई कोई वस्तु न लेना। यह तीसरा स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत है। ब्रह्मचर्याणुव्रत का पालन करने के लिए तुम अपने शरीर संस्कार के लिए शरीर को सजाने के अतिरिक्त विवाह होने तक स्त्री मात्र में माता तथा बहिन की भावना रखना । यह चौथा स्वदारसंतोष परदारविरमण व्रत है। परिग्रह का परिमाण करके परिग्रहपरिमाण अणुव्रत का पालन करना । यह श्रावक के पांच अणुव्रत है।
इन पांच अणुव्रतों के अतिरिक्त निम्नलिखित तीन गुणव्रतों का पालन करना
१. दिशिपरिमाण व्रत-चारों दिशाओं में जाने के लिए यह तय कर लेना कि अमुक दिशा में मैं यावज्जीवन इतनी दूरी तक ही जाऊंगा आगे न जाऊंगा।
२. भोगोपभोगपरिमाण व्रत-अपने भोग तथा उपभोग योग्य वस्तुओं का नित्य परिमाण कर लेना कि अमुक वस्तु का सेवन आज अथवा इस मास अथवा इस वर्ष में करना है शेष का नहीं। इसमें खोटे व्यापार के पन्द्रह कर्मादानों का भी त्याग करना।
३. अनर्थदंड विरमण व्रत-दूसरों को हिंसा कार्य आदि