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स्वधर्मीवत्सलता समय सामायिक तथा प्रतिक्रमण तथा समय समय पर पौषध आदि करते रहते हैं । धार्मिक भावना होने के कारण वह अपनी दरिद्रता को किसी के भी सामने प्रकट नहीं करते और न धनोपार्जन के लिए किसी अन्याय का सहारा ही लेते है। इसी कारण दरिद्र होते हुए भी उनकी बात सम्पूर्ण नगर भर में प्रामाणिक मानी जाती है। इस समय वह दोनों पति पत्नी किसी गंभीर समस्या के सम्बन्ध में आपस में वार्तालाप कर रहे हैं
पत्नी-इस प्रकार कैसे गुजारा चलेगा, पतिदेव ! आज कई दिन से एक समय भोजन करते हुए दिन कट रहे है। सभी बहुमूल्य आभूषण तथा अन्य वस्तुएं बिक चुकी हैं। अब कहां से खर्च चलेगा ?
पति--देवि ! , मनुष्य को आपत्ति के समय घबराना नहीं चाहिए। कर्मों के आगे किसी की कुछ नहीं चलती । देवी अंजना, सती सीता, राजा हरिश्चन्द्र तथा स्वयं तरण तारण जहाज भगवान महावीर स्वामी ने क्या क्या कष्ट नहीं सहे हैं ? उनके कष्टों के सामने हमारे कष्ट क्या हैं ? हमारा जीवन तो लाखों व्यक्ति की अपेक्षा अधिक सुखी है। आज लाखों प्राणी ऐसे हैं, जिन्हें एक समय भी रोटी नहीं मिलती।
पत्नी-आपका कथन ठीक है । मुझे अपने कष्टों की चिन्ता नहीं, किन्तु जिस समय मैं बच्चों को भूख से तड़पते हुए देखती हूं तो मेरा हृदय विदीर्ण हो जाता है। . पति-देवि! धर्म के प्रताप से सब आनन्द मगल ही होगा। जब वह दिन नहीं रहे तो यह दिन भी नहीं रहेगे।।
पति पत्नी इस प्रकार आपस में वार्तालाप कर ही रहे थे कि हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी किसी कार्यवश उनके घर आए। घर में प्रवेश करते ही वह पति पत्नी के दुःखजनक