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महासती की भविष्यवाणी
१२७ गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से प्रश्न किया कि हे भगवन् !
"देवता हो चाहे नारकी, पशु हो चाहे पक्षी यह कोई भी दुःखों के नाशक अक्षय सुख की प्राप्ति के लिये प्रयत्न नहीं करते। इस अनादि संसार में जीवों की संख्या अनन्त है। उनकी इच्छाएं भी पृथक पृथक् ही हैं । किन्तु ऐसा होते हुए भी उन सब की एक ही इच्छा है कि हमें सुख मिले। इस विषय में स्त्री, पुरुष, बालक, युवा, वृद्ध, राजा अथवा रंक सब की एक ही इच्छा है कि हमको सदा सुख मिलता रहे और दुःख हमारे पास भी न आने पावे। वह सभी अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार अपने अपने जीवन को सुखी बनाने के लिये प्रयत्न करते रहते हैं, किन्तु उन्हें सुख के स्थान पर मिलता केवल दुःख ही है । हे भगवन् इस का क्या कारण है ?"
इस पर भगवान् महावीर स्वामी ने उनको उत्तर दिया- "हे गौतम ! सुख दो प्रकार का है। एक क्षणिक, दूसरा अक्षय । क्षणिक सुख दुःख का उत्पादक है, किन्तु अक्षय सुख दु.ख का नाशक है। क्षणिक सुख देव, नरक, तियश्च तथा मनुष्य इन चारों ही गतियों में सुलभ है। अतएव सब प्राणी उसे ही प्राप्त करने के प्रयत्न में लगे रहते हैं।"
इस पर गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया
"हे भगवन् ! क्या अक्षय सुख सभी गतियों मे मिल सकता है ?"
इस पर भगवान् ने उत्तर दिया
"अक्षय सुख देवताओं, मारकियों तथा तिर्यञ्चों को नहीं मिल सकता । वह केवल मनुष्यों को ही मिल सकता है।"