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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी गौतम स्वामी-भगवन् ! क्या अक्षय सुख सभी मनुप्यां को मिलता है ? ' भगवान-नहीं, मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, एक भोगभूमिज दूसरे कर्मभूमिज। भोगभूमि में उत्पन्न होने वाले युगलियों की इच्छाएं कल्पवृक्षों द्वारा पूर्ण होती हैं, किन्तु कर्मभूमि वाले पुरुषार्थ करके अपनी आजीविका चलाते हैं। अक्षय सुख इन में से कर्मभूमि वालों को ही मिलना है, भोगभूमि वालों को नहीं मिलता।
गौतम स्वामी--भगवन् ! क्या वह अक्षय सुख कमभूमि के सभी निवासियों को मिलता है ? __ भगवान्-नहीं, पुरुषार्थी भी दो प्रकार के होते हैं। एक आर्य, दूसरे म्लेच्छ अथवा अनार्य । ३२००० देशों मे से केवल २५शा देश आर्य हैं, शेष अनार्य हैं। अनार्य लोग सब प्रकार के पाप पुण्य तथा धर्म अधर्म से अनभिन्न हैं। सो यह अक्षय सुख केवल आर्य देश वालों को मिलता है, अनार्य देश वालों को नहीं।
गौतम स्वामी-भगवन् ! क्या यह अक्षय सुख आये देशों के सभी निवासियों को मिलता है ?
भगवान् - नहीं, आर्य देश के मनुष्य भी दो प्रकार के हैं। एक कुल से आर्य, दूसरे कुल से अनार्य। जिनका कुल सदाचारी तथा निरामिपभोजी हो, जिनका व्यापार तथा व्यवहार छलरहित हो तथा जिन में गुरु जनों का आदर सत्कार किया जाता हो, वह आर्य कुल कहे जाते हैं। शेष अनार्य कुल हैं। अक्षय सुख इन मे से आर्य कुल वालों को ही मिलता है।
गौतम स्वामी-भगवन् ! संख्या की दृष्टि से तो अनार्यों की सख्या आर्यों से कहीं अधिक है। यदि स्थूल परिमाण से