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सम्यक्त्व प्राप्ति
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का पता लगेगा कि सम्यक्त्व का लक्षण वास्तव में क्या है ? इसे क्यों ग्रहण करना चाहिये तथा उस से क्या क्या लाभ होते है ?
पूख्य प्रवर श्री अमरसिंह महाराज ने अपना संवत् १६१४ का चातुर्मास अमृतसर में किया था। वह वहां अमृत की सरिता बहा कर भव्य प्राणियों की अनादिकालीन विषय वासना के ताप को शान्त करते हुए अमृतसर से लौटते हुए सम्बडियाल पधारे। अमरसिंह जी महाराज इस बार सम्बडियाल ग्यारह वर्ष के बाद आए थे। उस समय ११ वर्षे पूर्व शाह मथुरादास जी तथा उनकी धर्म पत्नी लक्ष्मी देवी दोनों ने ही पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज से श्रावक के द्वादश व्रतों के पालन करने का नियम लिया था। उसके तीन वर्ष बाद हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी का जन्म हुआ। आचार्य प्रवर श्री अमरसिंह जी महाराज के सम्बडियाल पधारने का समाचार सुन कर शाह मथुरादास जी तथा लक्ष्मी देवी आदि सभी को भारी प्रसन्नता
लक्ष्मी देवी अपने दोनों पुत्रों-शिवदयाल तथा सोहनलाल को लेकर उनके दर्शन करने गई। पूज्य श्री ने सोहनलाल जी को देख कर माता लक्ष्मी देवी से पूछा
“यह तुम्हारा पुत्र है ? यह तो बड़ा भाग्यशाली दिखलाई देता है।"
आचार्य महाराज के यह वचन सुन कर लक्ष्मी देवी बोली
"श्री महाराज ! यह आपका ही छोटा शिष्य है। जब आप श्री की इस पर अभी से इतनी अधिक कृपा दृष्टि है तो यह अवश्य ही भविष्य में महान् पुरुष बनेगा। इसने अभी से प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल, नव तत्व, छब्बीस द्वार तथा अनेक