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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी ___ सोहनलालजी इस प्रकार कृषक का हृदय परिवर्तन करके आगे को चल पड़े।
उधर सेठजी ने जव स्यालकोट पहुंच कर अपना सामान उतारा तो अपने सामान में जेवर के डव्वे को न पाकर वह बहुत घबरा गए। उन्होंने अपने सारे सामान को कई २ वार देखा, किन्तु डबा वहां होता तो मिलता। इस पर सेठजी को नौकर पर सन्देह होने लगा। अतएव वह उसकी डांट डपट करने लगे। किन्तु बेचारा नौकर उनको कहां से डव्वा पकड़ा देता ? इस पर सेठजी ने उसे पुलिस में दे दिया, जहां यमदूतों ने उसे अत्यधिक मारा । यद्यपि उसने पुलिस से वार वार कहा कि वह एक दम निरपराध है, किन्तु पुलिस उसे मारती ही रही। इस पर वह मन में सोचने लगा कि "वास्तव मे यह मुसीबत में फंसे हुए किसान को सताने का ही फल है।"
नौकर पर मार पड़ रही थी कि किसान ने आकर डब्बा सेठजी को देते हुए कहा-“सेठजी! यह आपका डव्चा है। यह आपके अपनी बग्गी आगे निकालने की जल्दी में गिर पड़ा था।"
सेठ इस दृश्य को देखकर अत्यधिक आश्चर्य में पड़ गया। वह मन में सोचने लगा।
"जिसे मैंने आपत्ति में डाला था, उसी ने मेरी आपत्ति से । रक्षा की है।" यह सोचकर उसका हृदय किसान के लिये कृतबता के भावों से भर गया। भावावेश के कारण कुछ समय तक तो उसके मुख से बोल तक न निकला। इसके बाद वह अपनी गढ़ी से उठ कर किसान के पैरों में गिर पड़ा और कहने
लगा