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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अनार्य देशोत्पन्न आर्द्रकुमार को मुनि तथा कालसौकरिक के असव्य पुत्र को भगवान महावीर का द्वादशव्रतधारी श्रावक बनाया था। धन्ना सेठ ने शालिभद्र को मित्रता के नाते आदर्श वीरता का पाठ पढ़ा कर उसे भगवान महावीर स्वामी का शिप्य बनाया था। श्री रामचन्द्र ने मित्रता के नाते ही सुग्रीव के कष्ट को दूर करके तारा के सतीत्व की रक्षा की थी। उन्होंने उसी मित्रता के नाते विभीषण के प्राण बचाने के लिये स्वयं अपने भ्रात लक्ष्मण को काल के मुख में झोंक दिया था। इसी मित्रता के नाते श्रीमद् यती रायचन्द्र जी जैन ने मोहनदास कर्मचन्द गांधी के अन्तःकरण स्थित अभिमान को निकाल कर उनको इस योग्य बनाया कि भविष्य में उन्होंने अपने सारे जीवन को देश हित समर्पण कर दिया और जिसके कारण वह विश्वविख्यात अहिंसक तथा स्वराज्य निर्माता वने। ऐसे मित्रों को वास्तव में धन्यवाद है। हमारे चरित्र नायक ने भी इसी प्रकार अपनी पन्द्रह वर्ष की अवस्था में धर्स का उपहास करने वाले अपने अबोध बाल मित्रों को समझा कर उनके हृदय में धर्म का बीज बोया था।
यह पीछे बतलाया जा चुका है कि श्री सोहनलाल जी ने पसरूर आकर स्कूल में नाम लिखा दिया था। जब परीक्षा के दिन आए तो विद्यार्थियों को परीक्षा की तय्यारी का अवसर देने के लिये स्कूल को बंद कर दिया गया। फिर परीक्षा हो चुकने पर परीक्षा फल निकलने के उपरांत स्कूल की अधिक समय के लिए छुट्टी कर दी गई। इस समय परीक्षा फल को देख कर पास होने वाले प्रसन्न हो रहे थे और फेल होने वाले अपने भाग्य को दोष देते हुए रो रहे थे। एक सम्पन्न घराने के . विद्यार्थी ने अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण होने के विजयोत्सव के रूप