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दीनों की सहायता
११५ ___ सेठ-भाई ! तुझे धन्य है । तू मनुष्य नहीं देवता है। तूने
आज मेरी आंखें खोल दी। तेरे उपकार से मैं कभी भी उऋण नहीं हो सकता।"
इस पर किसान ने उत्तर दिया। किसान-भाई ! यह सब उन घुड़सवार सोहनलाल जी का प्रताप है, जिन्होंने मेरा उस आपत्ति से उद्धार किया है। उन्होंने मुझ से कहा था कि 'दूसरे को दुःख देने वाला अपने लिए दुःख का बीज बोता है तथा दूसरों को सुख देने वाला अपने लिये सुख का बीज बोता है । जो कोई भी निर्धनों तथा आपत्ति में फंसे हुओं की सेवा करता है उसे अवश्य ही सत्य का दर्शन होता है। इसलिये अत्याचार सह कर भी सबका भला चेतना चाहिये।
किसान के यह शब्द सुनकर सेठजी ने उसी समय थाने में एक आदमी भेजकर अपने नौकर को छुड़वाया। सेठजी ने किसान को बहुत कुछ रुपये देने चाहे, किन्तु उसने रुपये लेने से साफ इन्कार कर दिया।
किसान के इस सत्कार्य से उसके गेहूं भी उसी समय तेज दामों में बिक गए, जिससे वह प्रसन्नतापूर्वक अपने घर चला गया।
उधर सोहनलाल जी भी सम्बडियाल में सीधे अपनी माता के पास पहुंचे। पुत्र के कपड़ों को कीचड़ में सने देखकर माता ने उससे पूछा
माता-क्या बेटा ! तू घोड़े से गिर गया था ? सोहनलाल--नहीं माता जी।
माता-फिर तेरे कपड़ों में यह कीचड़ किस प्रकार लग गया ?