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दीनों की सहायता
११३ सहसा दूसरे का धन पड़ा मिलना मनुष्य जीवन की सच्ची कसौटी है। जिस प्रकार सोने को कसौटी पर कसने पर ही उसके वास्तविक मूल्य का पता लगता है उसी प्रकार मनुप्य की परीक्षा भी ऐसे ही समय होती है। यदि मनुष्य ऐसे समय लोभ के वशीभूत न होकर सत्य पर दृढ़ रहता है तो उसको मनुष्य तो क्या, देवता भी नमस्कार करते हैं।"
इस पर कृषक ने उत्तर दिया
"भाई, मैं तो यह चाहता हूं कि सेठ को उसकी करनी का दंड अवश्य मिले।"
तव सोहनलाल बोले "भाई, यदि तुम सेठ को सच्ची सजा देनी चाहते हो तो यहां से इस डब्बे को लेकर सीधे स्यालकोट पहुंच कर उस सेठ के पास ले जाओ। इस डब्बे में लगे हुए कागज़ से यह पता चलता है कि यह व्यक्ति पाले शाह के यहां जावेगा । तुम पाले शाह के यहां जाकर यह डब्बा उसे देकर कहना कि "तुमने जो व्यवहार मेरे साथ किया है, उसके लिये मैं तुमको क्षमा करता हूं। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि तुम्हें भगवत्कृपा से व्यापार में अच्छी सफलता प्राप्त हो।" तुम्हारे ऐसा कहने से उसके मन में स्वयं ही पश्चात्ताप उत्पन्न होगा, जिससे वह भविष्य में फिर किसी भी निर्धन को कष्ट नहीं देगा।"
सोहनलालजी के मुख से इस प्रकार का उपदेश सुनकर किसान उनको अवतारी पुरुष मानने लगा। उसने उनको उत्तर दिया ___ "मैं आपके चरणों की शपथ खाकर प्रतिज्ञा करता हूं कि आपकी आज्ञानुसार सब कुछ करूंगा।'