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मामा के यहां निवास सेवाधर्मो परमगहनो योगिनामप्यगम्यः । सेवा धर्म अत्यन्त गहन है। योगी लोग भी उस में सुगमता से प्रवेश नहीं कर सकते। __ दूसरे की सेवा करते हुए यदि उस के मन के अनुसार सेवा न की जावे तो उस का मन अप्रसन्न हो जाता है। यदि अपने स्वजनों का ध्यान न रखा जावे तो वह अप्रसन्न हो जाते हैं। यदि सेवा करने में कोई त्रुटि रह जावे तो कठिनता होती है। इस प्रकार सेवा धर्म अत्यन्त कठिन है। सोहनलाल स्कूल में पढ़ने जाते थे और अपने सहपाठियों तथा पास पड़ोस वालों के शुद्धाचरण का ध्यान रखते हुए उनके घर से ईर्ष्या, द्वेष, लड़ाई, झगड़ों तथा चोरी जैसे मामलों को भी अपनी सूक्ष्म बुद्धि द्वारा दूर कर दिया करते थे। इस से जहां एक ओर उस बाल्यावस्था में ही उनकी ख्याति पास पड़ोस में बढ़ती जाती थी वहां उनकी माता के हृदय में उनके भविष्य के सम्बन्ध में चिन्ता बढ़ती जाती थी। वह सोचती थीं कि इस प्रकार दूसरों के मामलों में रात दिन पड़े रह कर वह किस प्रकार अपने अध्ययन कार्य को कर सकेगा ? एक दिन तो वह अत्यधिक चितित हो गई।