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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी इसको अनेक वार समझाया, किन्तु यह कभी भी बाज नहीं आता और लोग भी इसको अपने आप खैच लेते हैं। इस लिये आप इसे पसरूर ले जावें। यहां रह कर यह इन पंचायतों से कभी भी नहीं बच सकेगा।"
लक्ष्मी देवी का यह कथन सुन कर लाला गंडा मल बहुत प्रसन्न हुए, क्यों कि सोहनलाल जी से उनको असाधारण प्रेम था। वह लक्ष्मी देवी से कहने लगे ___"लक्ष्मी ! आज तो तू ले जाने को कह रही है। किन्तु कुछ दिनों से ही तुझको इसकी याद आवेगी और फिर तू इसकी याद मे बेचैन हो जावेगी । जब कभी यह छुट्टियों में पसरूर जाता है तो तुझे कल नहीं पड़ती। किन्तु जब यह पसरूर के स्कूल में पढ़ने लगेगा तो तुझे इसकी वहुत याद आवेगी। बतला, तू इसके वियोग को सहन कर लेगी ?"
इस पर लक्ष्मी देवी ने उत्तर दिया
लक्ष्मी-"इसके भविष्य के लिये मैं सब कुछ सहन कर लूगी। यह छुट्टियों मे आकर मुझ से मिल जाया करेगा । जब कभी मुझे वीच मे याद आया करेगी तो मैं इसे पसरूर जाकर देख आया करूंगी । इसलिये आपका इसको पसरूर ले जाना ही ठीक है। मेरी इसमें पूर्ण सहमति है।" । ___ इस पर लाला गंडा मल बोले-मेरे लिये तो यह और भी प्रसन्नता की बात है। अच्छा, मैं इसे पसरूर ले जाता हूं। यह ठीक है कि पसरूर जाकर यह यहां की पंचायतों के झमेले से वच जावेगा और तब इसकी पढ़ाई ठीक ठीक हो सकेगी। मैं इस बात का ध्यान रखूगा कि यह वहां जाकर नई नई पंचायत न बना ले।