________________
१०७
मामा के यहां निवास उस ने लाला जी के निराश्रितों की सेवा करने के स्वभाव की अत्यधिक प्रशंसा करते हुए उन का सब को परिचय दिया।
इस प्रकार श्री सोहनलाल जी को अपनी माता लक्ष्मी देवी, पिता लाला मथुरादास जी के उत्तम संस्कारों के अतिरिक्त अपने मामा लाला गंडामल से भी उत्तम संस्कार मिलने लगे, जिस से उनके गुणों में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी। अब आप पसरूर से मामा के यहां रह कर पढ़ने लगे। वहां से आप प्राय: छुट्टियों में ही अपने घर सम्बडियाल आया करते थे, और वहां से इधर उधर जाकर अन्य कार्य भी किया करते थे।