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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी पसरूर से घोड़े पर बैठ कर स्यालकोट के मार्ग से सम्बडियाल को जाते हुए सोहनलाल जी इस प्रकार मन ही मन विचार कर ही रहे थे कि सामने कोलाहल सुन कर उनकी विचारधारा । टूट गई। ___ उन्होंने देखा कि एक कृपक अपनी गाड़ी में गेहूँ भरे हुए उन्हें बेचने स्यालकोट ले जा रहा है। एक तंग रास्ते पर उसकी गाड़ी के पहिये की कील निकल गई, जिससे उसकी गाड़ी का पहिया निकल पड़ा। किसान अकेला था तथा गाड़ी भारी थी। अतएव वह बहुत प्रयत्न करने पर भी पहिये को गाड़ी में नहीं लगा पा रहा था। उसी समय पीछे से एक घोड़ा गाड़ी भी आगई। उसमे एक सेठ साहिब यात्रा कर रहे थे । उनको स्यालकोट पहुंचने की शीघ्रता थी। .
सेठ साहिब को अपने मार्ग मे आते हुए इस विघ्न को देखकर बड़ा भारी क्रोध आया। उन्होंने अपने एक बलिष्ट नौकर को इस प्रकार आज्ञा दी___ "तुम इस गाड़ी की बोरियों को गाड़ी मे से खींच कर नीचे सड़क पर डाल दो और फिर खाली गाड़ी को मार्ग में से धकेलते हुए एक ओर हटाकर अपनी घोड़ा गाड़ी को आगे निकाल लो।"
सेठ जी की इस आज्ञा को सुनकर कृषक बोला
"शाह जी ! ऐसा न करो। इससे तो मैं जीवित ही मर जाऊंगा । इस स्थान पर वर्षा के कारण कीचड़ वहुत है। यदि
आप मेरी गेहूं की बोरियों को नीचे डलवा देगे तो वह भीग जावेगी, जिससे मेरी बहुत हानि होगी।"
किन्तु किसान के इन कोमल बचनों से सेठ जी के मन मे