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पवित्र हास्य बालक बसंती कुरते भी पहिने हुए हैं। विदेशी सभ्यता के सामने स्वदेशी सभ्यता को तुच्छ समझने वाले जेंटिलमैनों के हाथ में भी बसंती रूमाल स्थान स्थान पर दिखलाई दे रहे हैं। नगर के बाहिर तो प्रकृति देवी का सौंदर्य अपने सम्पूर्ण रूप में खिल उठा है। गेहूँ तथा चने की फसिलें अपने भरपूर यौवन में होने के कारण कृषकों के अतिरिक्त दर्शकों के मन को भी मुग्ध कर रही हैं। वास्तव में कृषि प्रधान भारतवर्ष का इस पूरे वर्ष का भविष्य इन्हीं फसिलों पर निर्भर करता है। खेतों में फूली हुई सर्यो दर्शकों के मन को सब से अधिक आकर्षित करके अपनी सुगन्धि से सब के मन को मोह रही है। शिशिर ऋतु में जिन वृक्षों के पुष्प पत्र झड़ गए थे वह भी बसंतराज के
आगमन के उपलक्ष में नवीन रस, नवीन पत्तों तथा नवीन पुष्पों से सुसज्जित होकर ऋतुराज बसंत का स्वागत करने को तैयार खड़े हैं। स्कूल के बालकों की तो प्रसन्नता के क्या कहने। उनको तो
आज बसंत की छुट्टी के कारण खेतों की सैर करने का अवसर मिल गया है। सभी लड़के दो दो चार चार की टोलियां बना कर खेतों में घूम रहे हैं। इन में से कोई सरसों के फूल तोड़ रहा है तो कोई आम की मंजरी को कान में लगाए हुए है। कोई कोई बालक वृक्ष के पत्तों को व्यर्थ ही तोड़ तोड़ कर फेंकता हुआ अपने बाल सुलभ अज्ञान का परिचय दे रहा है। ऐसे समय दो बालक एक कृषक के खेत में कुएं के पास खड़े हैं। दोनों के शिर पर बसंती टोपी चमक रही है। शरीर पर भी बसंती रंग की कमीज होने के कारण उनकी सुन्दरता और भी खिल उठी है। दोनों बालक प्रकृति का सौंदर्य देख कर अत्यन्त प्रसन्न हो रहे हैं। पास में कृषक का एक कंबल पड़ा हुआ है, जो फटा हुआ तथा कई स्थानों पर सिला हुआ है। उस में भिन्नजातीय वस्त्रों की अनेक थिकलियां भी लगी हुई अपने स्वामी की