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पवित्र हास्य तुलसी निज मन को विथा, कबहूं कहिये नांहि । सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लेहैं ताहि ॥
तुलसीदास जी कहते हैं कि अपने मन का कष्ट किसी को भी नहीं वतलाना चाहिये, क्योंकि उसको सुनकर सब लोग हँसी उड़ाते हैं, उसमें भाग लेकर बांटता कोई नहीं।
किन्तु नीचे एक ऐसी घटना दी जाती है, जिसमें किसी के कप्ट को विना सुने ही उसके साथ पवित्र हास्य करके उसके कष्ट को दूर किया गया है। ___ वसन्त पञ्चमी का दिन है। सरदी कड़ाके की पड़ रही है, जिससे दांत कट-कट बोलने लगते हैं। किन्तु वसन्त के कारण लोग सरदी पर ध्यान न देकर अत्यन्त प्रसन्न दिखलाई दे रहे हैं। इस लिये बाजार में आज जिधर देखो, उधर अद्भ त शोभा दिखलाई दे रही है। बालिकाएं तथा युवतियां वसंती साड़ी पहिने तथा गले में बसंती दुपट्टे डाले, सरसों के पुष्पहार गले में पहिने प्रमुदित मन से इधर उधर घूम रही हैं। पुरुषों में भी जिधर देखो उधर बसंती पगड़ी दिखलाई दे रही है। बालक भी सिर पर बसंती टोपी पहिने उछल कूद मचा रहे हैं। अनेक