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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी दरिद्रता का गला फाड़ फाड़ कर वखान कर रही हैं। कंवल के पास एक जोड़ा जूता भी रखा हुआ है, जो उस कंवल की पूर्णतया समानता कर रहा है। कारण कि जूता भी पर्याप्त हटा होने के कारण अनेक स्थानों पर सिला हुआ है। कृषक वहां से कहीं बहुत दूर खेत से भ्रमण करता हुआ फसिल को देख देख कर प्रसन्न हो रहा है और शेखचिल्ली के समान व्यर्थ के मनसूबे वांधता जाता है। वह लड़कों के नेत्रों से बहुत दूर है, जिससे न तो लड़के उसे देख पाते हैं और न उसको ही लड़कों की उपस्थिति का कोई मान है। उस समय एक लड़के ने दूसरे से
कहा
"मित्र सोहनलाल ! मेरी सम्मति में तो कृपक के साथ कुछ हास्य करना चाहिये। यदि तू कहे तो मैं यह कंबल या जूता कहीं छिपा दू और छिप कर देखें कि यह क्या कहता है तथा क्या करता है।"
सोहनलाल-"मित्र धारी! मुझे तुम्हारा प्रस्ताव इस रूप में पसंद नहीं है। मैं ने अपनी माता जी तथा पूज्य पुरुषों से सुना है कि दूसरे की हानि करके अथवा उसे परेशानी में डाल कर उसे आश्चर्यचकित करके हंसना बड़ा भारी पाप कर्म है तथा इस कार्य से अशुभ कर्म का बंध होता है। इस प्रकार हंसी हंसी में बांधे हुए फर्म रोते रोते हुए भी छुटने , कठिन पड़ जाते हैं। यदि तुम को किसी का उपहास ही करने का शौक हो तो तुम उसको इस प्रकार लाभ पहुंचाओ कि उसको लाभ पहुंचाने वाले का किसी प्रकार भी पता न लग सके । इस प्रकार तुम उसको आश्चर्य में डाल कर फिर उस पर चाहे जितना हंसो । यदि तुम उसका कंबल या जूता छिपा दोगे तो प्रथम तो तुम को यही प्रत्यक्ष रूप से गालियां तथा अपशब्द सुनने पड़ेंगे, किन्तु