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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी डाला तो उसके अंदर से तीन रुपये निकल कर पृथ्वी पर गिर पड़े। अब तो उसे और भी अधिक आश्चर्य हुआ। वह
आश्चर्यचकित नेत्रों से चारों ओर देखने लगा कि उसे कोई दिखलाई दे जावे, किन्तु उसे कोई भी नजर न आया। जब उसे कोई भी दिखलाई न दिया तो उसने उच्च स्वर से यह आवाज
दी
'अरे भाई, जिसने मेरे साथ हंसी की हो वह पाकर अपने रुपये ले जावे' । जब तीन बार बुलाने पर भी कोई न आया तो वह हर्ष में विभोर होकर इस कार्य को साक्षात् ईश्वर की लीला समझ कर हर्ष से नाचने लगा। उसने आकाश की ओर दोनों हाथ जोड़ कर उच्च स्वर से कहा
"हे भगवान् ! मुझ जैसे पापी के परिवार की रक्षा करने के लिए तुम्हे स्वयं यहां तक आना पड़ा। हे प्रभो ! मैं तुम्हारे इस उपकार का वदला किस प्रकार दृगा। भगवन् ! इन पांच रुपयाँ से मेरा आनन्द से दो मास तक गुजारा चल जायेगा । तव तक मेरे अपने खेत का अनाज भी तय्यार हो जावेगा।"
इस प्रकार कहते कहते कृषक के नेत्रों से हर्ष के आंसू बहने लगे। इसके बाद वह किसान सच्चा वसंत मनाता हुआ अपने सारे परिवार को यह सुसंवाद सुना कर सुखी बनाने के लिए लम्बे लम्बे पैर रखता हुआ घर की ओर चल पड़ा। घर पहुंच कर जब उसने अपने परिवार को यह समाचार सुनाया तो उसका वह सारा सरल परिवार इसको ईश्वर का कार्य समझ
कर भक्तिरस में डूबकर ईश्वर का गुणानुवाद करके सच्चा । बसन्त मनाने लगा।
रामधारी के मन पर तो इस घटना का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। उसने मित्र से कहा