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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी जाने इन निर्दोष नौकरों को किस आपत्ति का सामना करना पड़े। यदि मैं अपने अपराध के कारण उनको दण्ड मिलते देखू तो यह महान अन्याय होगा, वरन महा पाप होगा। पूजनीय माताजी तथा परम पूजनीय गुरुजी ने भी मुझे वार वार यही शिक्षा दी है कि "वत्स ! भूल कर भी अपने अपराध को दूसरे पर मत डालो। जो व्यक्ति भय के वशीभूत होकर अपना अपराध दूसरों पर डालता है उसे शुद्धाचरण होते हुए भी उसी प्रकार मिथ्या कलंक लग कर तीन अपमानित होते हुए दु.ख उठाना उड़ता है, जैसा परम सती सीता तथा अखना देवी को उठाना पड़ा था।"
इस प्रकार विचार करके उनका पापभीरु आत्मा अपने पिता जी को उसी समय सत्य घटना सुनाने के लिये व्याकुल हा उठा। उन्होंने आगे बढ़कर नम्रतापूर्वक मन्द स्वर से अपने पिता जी से कहा। ___ "पिता जी । आप इन निर्दोष नौकरों को कुछ भी न कहें ।। इसमे इनका लेशमात्र भी दोप नहीं है।"
पिता-सोहनलाल ! क्या तुम वतला सकते हो कि यह किसका अपराध है ?
सोहन--जी, मैं बतला सकता हूं। अपराधी आपके सामने खड़ा है। आप उसे जो चाहे कठोर से कठोर दंड दें।
यह सुनकर शाह मथुरादास जी ने आश्चर्यचकित होकर सोहनलाल जी से कहा
पिता-मैं तो यहां नौकरों के अतिरिक्त अन्य किसी को भी नहीं देखता।
सोहन--पिता जी, क्या नौकर ही सदा अपराध करते हैं ?