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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी सुनाया था, जिस में एक श्वेत वर्ण तेजस्वी सिंह के मेरे मुख में प्रवेश करने की घटना थी।" ।
"हां, हां, मला वह भी कोई सूलने की बात है ? ऐसा कौन मूर्ख है जो ऐसे असाधारण सौभाग्यवर्द्धक स्वप्न को भूल जावे।" ___ "नाथ ! सेरा तो ज्यों ज्यों यह गर्भ बढ़ता जा रहा है त्यो त्यों मेरे विचारों से बहुत कुछ परिवर्तन होता जा रहा है। पतिदेव !
आज मैं यह विचार कर रही थी कि मनुष्य जीवन का क्या ध्येय है। क्या सुन्दर वस्त्राभूषणों को पहिनना, उत्तम सुस्वादु पौष्टिक पदार्थों का भोग लगाना अथवा सुन्दर यानों पर बैठ कर संसार को अपना वैभव दिखलाना ही मनुष्य जीवन का ध्येय है ? नहीं, कदापि नहीं। मनुष्य जीवन का ध्येय यह नहीं हो सकता । यदि मनुष्य जीवन का ध्येय यह होता तो बड़े बड़े उत्तम पुरुष तथा ऐसे महात्मा जिनको हम अपना आदर्श गुरु मानते हैं तथा जिनके वचन पर विश्वास कर हम अपने सर्वस्व तक का बलिदान कर देने को सदा तत्पर रहते हैं वह त्यागी निर्ग्रन्थ मुनि इन पदार्थो का त्याग क्यों करते ? अतएव कुछ दिनों से मेरे मन में अनेक प्रकार की अभिलाषाएँ उत्पन्न होती रहती हैं।"
"अपनी उन अभिलाषाओं के विषय में मुझको भी तो कुछ वतलायो।" ___"मैं कई दिनों से अपनी इन इच्छाओं को मन में दवा कर रखती रही। आज आपकी आज्ञा है तो मैं आपके सामने उनके विषय में कुछ निवेदन करती हूं। मेरी प्रथम इच्छा तो यह है कि मैं सुन्दर सुन्दर वस्त्राभूषण पहिनने की अपेक्षा यथाशक्ति