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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी साता-बेटा, तुसने रोग के जो जो कारण बतलाए हैं वह केवल उसके निमित्त कारण हैं। अपने रोग का वास्तविक कारण यह मनुष्य स्वयं ही है।
सोहनलाल-वह किस प्रकार माता जी ?
माता-बेटा, जो व्यक्ति बारह कारणों में से किसी एक कारण का भी सेवन करता है उसे रोग आदि भयंकर दुःखों का सामना करना पड़ता है।
सोहन-माता जी, वह बारह कारण कौन २ से हैं ? _ माता-बेटा, सुनो, मैं तुमको वह बारह कारण बतलाती
(१) दूसरों को दुख देना, (२) दूसरे के अन्तःकरण में शोक अथवा चिन्ता उत्पन्न करना, (३) दूसरे के जी को जलाने के लिये कोई कार्य करना, (४) दूसरे को सताना, (५) दूसरे की ताड़ना करना, (६) दूसरे को परिताप देना, अर्थात् उसे मानसिक उद्वेग आदि उत्पन्न करना, (७) दूसरे को अत्यन्त दुख देना, () दूसरे के अन्तःकरण में अत्यन्त शोक तथा चिन्ता उत्पन्न करना, () हमेशा दूसरों को जलाने के लिये ही कार्य करना, (१०) दूसरे को अत्यन्त सताना, (११) दूसरे की अत्यधिक ताड़ना करना तथा (१२) दूसरे को अत्यधिक परिताप उत्पन्न करना। इन बारह कारणों में से किसी एक का सेवन करने से आत्मा को इस जन्म में तथा जन्म जन्मान्तरों में मृगालोढ़े के समान दुःख उठाना पड़ता है। ___ सोहन-माता जी, मृगालोढ़े ने तो मनुष्य जन्म में भी नरक से अधिक दुःख उठाया था। किन्तु माता पिता भी तो पुत्र को मारते ताड़ते तथा रुलाते हैं, तो क्या उनको भी