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विद्यारम्भ
५३ यह संवत् १९१३.विक्रमी अथवा सन् १८५६ की घटना है। इस समय ग़दर नाम वाले भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध में एक वर्ष की देर थी। महाराजा रणजीत सिंह का जून १८३१ में स्वर्गवास हो जाने पर प्रथम सिक्ख युद्ध के बाद पंजाब के शासन में मार्च १८४६ से अंग्रेजों का प्रवेश हो गया था। किन्तु जनवरी १८४८ में लार्ड डलहौजी के भारत का गवर्नर जेनेरल बन कर भारत आने पर द्वितीय सिक्ख युद्ध हुआ। इस युद्ध के बाद लार्ड डलहौजी ने २६ मार्च सन् १८४६ को पंजाब से अल्पवयस्क दलीपसिंह के शासन को समाप्त करके उसे ब्रिटिश भारत में मिला लिया। इसी वर्ष सन् १८४६ ईस्वी अथवा संवत् १९०६ में हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी का जन्म हुआ था। इस घटना के सात वर्ष बाद सन् १८५६ ईस्वी अथवा संवत् १९१३ में कथित गदर से एक वर्ष पूर्व उनका अक्षरारम्भ संस्कार किया गया। सम्बडियाल पर तो इस राज्यपरिवर्तन का जैसे कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा।
आज शाह मथुरादास जी के यहां खूब चहल पहल है। घर में चारों ओर आनन्द का समुद्र उमड़ा पड़ रहा है। नौकर चाकर आदि सभी हर्ष में, भरे हुए गृहस्वामी की आज्ञा का पालन कर रहे हैं। घर का एक सातवर्षीय बालक सभी के हर्ष का केन्द्र बन रहा है। इस बालक का बड़ा भाई शिवदयाल भी आज अत्यधिक प्रसन्न है। बालक सोहनलाल के शरीर का रंग कुन्दन के समान चमक रहा है। उसके मुख पर आनन्द की आभा छा रही है। उसके हृदय में अपार उत्साह है। उसके शरीर पर बहुमूल्य नूतन वस्त्र हैं। उसके एक हाथ में लकड़ी की पट्टी तथा दूसरे में दवात तथा कलम है। उसकी बगल में हिन्दी की 'बाल शिक्षा' नामक पुस्तक है। बालक ने अपने इसी रूप में