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विद्यारम्भ छात्र ने कुछ मिनटों में ही उनकी सुन्दर सुन्दर अक्षरों में नकल करके पट्टी फिर गुरु जी को दिखलाते हुए कहा ___ "गुरु जी, यह तो मुझे याद हो गए। अब आप मुझे अगले अक्षर बतला दें।"
गुरु जी को बालक की ऐसी तीक्ष्ण बुद्धि पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने उसकी तख्ती पर अगले अक्षर लिख दिए और उसे अत्यन्त प्रेमपूर्वक सावधानी से पढ़ाने लगे।
बालक ने अपनी तीव्र बुद्धि के बल पर कुछ ही दिनों में वर्णमाला को समाप्त कर लिया, जिस से गुरु जी अत्यन्त प्रसन्न होकर बालक की तीक्ष्ण बुद्धि की प्रशंसा करने लगे तथा अन्य छात्रों से बोले ___ "लड़कों, तुमको भी इस सोहनलाल के समान होशियार बनना चाहिये।"
बालक सोहनलाल केवल बुद्धिमान ही नहीं, वरन् महान् विशाल हृदय भी था। वह अपने कमजोर सहपाठियों को पढ़ाया भी करता था और उनके पठन कार्य में पूरी सहायता दिया करता था।
उसके सहपाठियों में जो दरिद्र होते उनको तथा पीड़ित विद्यार्थियों को वह समय समय पर कापियां, पुस्तकें, स्लेट, कलम, दवात तथा वस्त्र आदि प्रसन्नतापूर्वक दे दिया करता था । खान पान की वस्तुएं जो कुछ वह घर से पाठशाला ले जाता अपने सहपाठियों में बांट कर खाया करता था। माता पिता से समय समय पर उसे खर्च के लिये जो पैसे मिला करते थे, उन्हें वह स्वयं खर्च न करके अपने सहपाठियों को दे दिया करता था।