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पितृ शिक्षा माता शत्रः पिता वैरी, येन बालो न पाठितः । न शोभते सभामध्ये, हंसमध्ये बको यथा ॥
जो माता पिता अपनी संतान को शिक्षा नहीं देते, वह अपनी संतान के शत्रु होते हैं। वह सभा में उसी प्रकार अच्छे नहीं लगते, जिस प्रकार हंसों में बगुला ।
-संसार में पिता पुत्र का वार्तालाप तो नित्य होता ही रहता है, किन्तु उन बातों में प्रायः सारभूत तत्त्व कुछ भी नहीं होता। यदि बालक छोटा हो तो पिता उसको खिलौना समझ कर उससे अपना मन बहलाते हैं अथवा उसका मन बहलाते हैं। अतएव इस प्रकार के वार्तालाप में उपहास, छल कपट तथा लोभ की वृद्धि करने वाली बातें ही अधिक होती हैं। यदि बालक बड़ा हो जाता है तो पिता पुत्र के वार्तालाप का विषय प्रायः गृहस्थ सम्बन्धी चर्चा होती है। प्रायः पिता पुत्र के वार्तालाप में अनुकरण करने योग्य तथा प्रत्येक व्यक्ति के शिक्षा, ग्रहण करने योग्य बातों का अभाव ही होता है।
वैसे प्रत्येक बालक में स्वाभाविक उत्सुकता तथा जिज्ञासा होती है। वह चाहता है कि मुझे संसार भर की वस्तुओं का