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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी इस कसरे में चारों ओर महान पुरुषों के चित्र लगे हुए हैं। अनेक उत्तम सूक्तियां भी बड़े बड़े कागजों पर चित्रकारी के ढंग पर छपी हुई तथा लिखी हुई उस कमरे में लगी हुई हैं। इससे पता चलता है कि गृह स्वामी अत्यन्त पवित्र धार्मिक आचार विचार वाला व्यक्ति है। कमरे में नीचे जरी के काम वाला गलीचा बिछा हुआ है। एक ओर उसमें छोटी सी मेज़ के चारों ओर सोफा सेट तथा आराम कुर्सी पड़ी हुई है। छत में झाड़ फानूस तथा अनेक प्रकार की कांच की हांडियां अत्यधिक शोभा देती हुई गृहस्वामी के वैभव को प्रकट कर रही हैं। एक
ओर दो तीन शीशे की अलमारियां रक्खी हैं, जिनमे वेष्टन में बँधे हुए कुछ धार्मिक ग्रन्थ रखे हैं। एक अलमारी में छपे हुए राजनीतिक तथा सामाजिक ग्रन्थ भी रखे हुए गृहस्वामी के विशाल ज्ञान तथा साहित्य प्रेम का परिचय दे रहे हैं। मेज़ के ऊपर एक सुन्दर मेज़पोश बिछा हुआ है, जिसके ऊपर ताजे फूलों का एक गुलदस्ता अपनी भीनी तथा मीठी सुगन्धि से उस सारे कमरे को सुगन्धित कर रहा है। इस समय उस कमरे में बालक के अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं हैं। बालक गहरी नींद में सो रहा है, किन्तु हाथ पैर हिलाने के कारण दुशाला उसके मुख पर से उतर गया है। खिड़की की ओर से सूर्य की किरणें
आकर बालक के ऊपर पड़ रही हैं, जिनके ताप से बालक की नींद बीच बीच में उचट जाया करती है। इसी समय एक काले रंग का सर्प कमरे में आता हुआ दिखलाई दिया। सर्प मणिबंध के जैसा स्थूलकाय था। सर्प ने आकर एक बार उस कमरे में फन फैला कर चारों ओर देखा। जब उसको कमरे के निर्जन होने का विश्वास हो गया तो वह धीरे धीरे पलंग पर चढ़ कर धीरे से सिरहाने की ओर इस प्रकार कुण्डली मारकर बैठ गया कि उसकी आहट से बालक जाग न जावे । अब उसने बालक के