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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी चले जाने की प्रार्थना की। थोड़ी देर में ही नाग इसके उपर से अपने फण को हटा कर तथा चारपाई से नीचे उतर कर कमरे में अदृश्य हो गया।
इस बात को सुनकर शाह मथुरादासजी हर्ष में विभोर हो गए। उन्होंने बालक को गोद में लेकर उसको खूब प्यार किया। फिर वह गदगद करठ से अपनी धर्मपत्नी से बोले ।
"हे देवी! वास्तव में यह बालक अत्यन्त पुण्यशाली है। यह बड़ा होकर संसार में अद्वितीय विद्वान् तथा शूरवीर बनेगा
और हमारे कुल के नाम को उज्वल करेगा। यह अपने भुजवल से ऐसा सम्राट भी कहलायेगा, जिसके चरणों में बड़े बड़े राजा महाराजा भी मुकुट सहित अपने मस्तक को झुकाने में अपना सौभाग्य समझेगे। हे देवी! ऐसा कौन सा पिता है जो प्रत्यक्ष चमत्कार दिखलाने वाले ऐसे बालक को देखकर भी अपने आप को सौआग्यशाली न समझे।"