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मातृ शिक्षा मातृवान् पितृवान् आचार्यवान् वा पुरुषो वेद । बालक को प्रथम शिक्षा माता से मिलती है, जिससे वह मातृवान् कहलाता है। फिर कुछ समझदार होने पर उसे पिता से शिक्षा मिनती है, जिससे वह पितवान् कहलाता है। फिर अन्त में उसको आचार्य से शिक्षा मिलती है, जिससे वह प्राचार्यवान् कहला कर पूर्ण ज्ञानी बनता है।
संगति का प्रभाव संसार में व्यापक रूप में पड़ता हुआ देखा जाता है। बालकों पर तो यह प्रभाव और भी अधिक मात्रा में पड़ता है। यदि माता विदुषी हो तो वह अपने बालक को योग्य से योग्य बना सकती है, किन्तु यदि वह अयोग्य तथा मूर्ख हो तो वह अपने पुत्र को अधम से अधम भी बना सकती है। वास्तव में माता का प्रभाव पुत्र पर पिता की अपेक्षा भी अधिक पड़ता है, क्योंकि बालक की आरम्भिक गुरु माता ही होती है।
महाभारत में एक आख्यान मन्दालसा नामक एक महिला का आता है । मन्दालसा एक बहुत बड़े राजा की रानी थी। दोनों पति पत्नी बड़े अच्छे विद्वान थे। एक बार मन्दालसा के